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Monday 30 April 2012

खइके पान आगरा वाला...








यूं तो बनारस का पान दुनियाभर में मशहूर है लेकिन अपने आगरा का पान भी कम नहीं। यहां का मिठुआ और बनारसी बीड़ा मुंह में डालते ही लोगों पर अजब खुमारी छा जाती है। पान के शौकीनों पर पान का असर इतना जबरदस्त है कि जब तक वे दिन में दो-चार बीड़े चबाकर दांतों में सुपाड़ी नहीं फंसा देते तब तक जीभ को चैन नहीं मिलता।

प्रीति शर्मा 
पान-सुपारी की दुनिया में भले ही इन दिनों गुटखा अपना वर्चस्व कायम करने की जुगत में लगा है लेकिन फिर भी पान के दीवानों की नजदीकि हासिल नहीं कर पाया है। पान की पुड़िया खोलने के बाद पान मुंह में डालने और फिर उंगलियां चाटने में जो आनंद आता है, वो रस गुटखे का पाउच फाड़कर मुंह में डालने में कहां..। यही कारण है कि आज भी शहर में लाखों रुपये के पान हर रोज खाए जा रहे हैं। कोई बनारसी का शौकीन है तो कोई मिठुआ का। कोई जगन्नाथ पान खा रहा है तो कोई देसी चबा रहा है। हर पान की तासीर अलग है और हर का स्वाद अलग। कई लोग तो ऐसे हैं जो बीते 30-40 साल से हर रोज पान चबा रहे हैं। पान खाते-खाते उनके दांत लाल हो गए हैं लेकिन तबियत नहीं भरी। सुबह से पान की दुकान पर पहुंचते हैं देर रात तक दस-बीस पान चबा डालते हैं।
शहर में पान के इतिहास पर नजर डाली जाए तो यह काम मुगलकाल से  हो रहा है। राजस्थान के बियाना, मध्यप्रदेश के ग्वालियर, संदलपुर, बिलौआ आदि स्थानों से पान यहां आता है। सादा पान के थोक विक्रेता रविकांत गुप्ता बताते हैं कि उनका परिवार करीब 80 साल से इस काम में लगा हुआ है। शहर में पान पैदा नहीं होता, यह निकतवर्ती क्षेत्रों से मंगाया जाता है। खासतौर से राजस्थान और मध्यप्रदेश पास होने के कारण यही से सादा पान खरीदा जाता है। यह पान देसी होता है। वर्तमान में शहर में सादा पान (पान के पत्ते) की बिक्री करने वाले आठ होलसेलर विक्रेता हैं। पान की खरीद फरोख्त हर दिन सुभाष बाजार स्थित जामा मस्जिद के नीचे होती है। रविकांत बताते हैं कि पहले जहां लोग सिर्फ पान ही खाया करते थे वहीं अब गुटखा लोगों की जुबान पर चढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि अब पान की बिक्री जहां 40 प्रतिशत रह गई है वहीं गुटखे के ग्राहक 60 फीसदी हो गए हैं। लेकिन, फिर भी पान के शौकीनों की कमी नहीं। यही कारण है कि प्रतिदिन यहां से लाखों रुपये के पान छोटे विक्रेताओं द्वारा खरीदे जाते हैं।
फ्रीगंज रोड स्थित श्यामबाबू पान भंडार को करीब 60 साल हो गए हैं। यह दुकान नानकचंद ने शुरू की थी। उसके बाद इसे रमनलाल ने संभाला। अब रमनलाल के पुत्र इस दुकान की देखरेख में लगे हैं। जिस वक्त ये दुकान खोली गई थी, उस समय शहर में पान की दुकानें कम ही थीं, साथ ही गुटखा भी नहीं था, अत: शौकीन लोग पान ही खाया करते थे। प्रदीप बताते हैं कि जब यह दुकान खोली गई थी, तब दिन भर में 500-600 पान बिकते थे लेकिन अब 200-250 पान की मांग रहती है। उन दिनों मीठा और तम्बाकू वाले पान ज्यादा चला करते थे। बच्चे और महिलाएं मीठे पान की मांग करती थे वहीं पुरुष तम्बाकू वाला पान खाते थे। दयालबाग स्थित श्रीकृष्ण पान भंडार के संचालक ताराचंद्र अग्रवाल बताते हैं कि उनकी दुकान1962 में उनके पिताजी ने खोली थी। उस समय जब यह दुकान खोली गई थी तब प्रतिदिन ढाई सौ से लेकर पांच सौ पान तक बिक जाया करते थे। लेकिन अब दिन भर में सौ से ज्यादा पान नहीं बिकते। वे हफ्ते भर का स्टॉक एक दिन मंडी से लेकर आते हैं।
सैय्यद मुर्शरत अली का खानदान इस काम में पिछले 90 साल से लगा है। 1987 में उन्होंने पान लगाना शुरू किया था। उससे पहले उनके पापा और दादा सादा पान बेचा करते थे। मुर्शरत बताते हैं कि उन दिनों तम्बाकू का जो पान तीस-चालीस पैसे में आता था, उस पान की कीमत आज चार रुपये है।

मुंह लगा है खास दुकान का पान
हमारे शहर में पान के ऐसे-ऐसे शौकीन मौजूद हैं जो पान खाते ही बता देते हैं कि यह पान किस दुकान का है। एक ऐसे ही शख्स हैं चंद्रा साहब। वे दिन में बीस-पच्चीस पान खा लेते हैं। पिछले बीस साल से वे नियमित तौर पर फ्रीगंज रोड स्थित एक दुकान से पान खरीदते हैं। पान विक्रेता के मुताबिक ये साहब उस समय से दुकान पर आ रहे हैं जब उनके पिताजी पान बनाते थे। चंद्रा साहब जैसे सैकड़ों लोगों को आज भी जब पान खाने की तलब उठती है तो वे ऐसे अकुला उठते हैं जैसे जल बिना मछली।
किसी को हरीपर्वत स्थित दुकान का पान पसंद है तो किसी को ताजगंज स्थित दुकान का। छत्ता बाजार, सदर, न्यू आगरा, लोहामंडी आदि क्षेत्रों में पान की कुछ ऐसी खास दुकानें हैं जहां से लोग गुजरते हैं तो दुकान को जरूर निहारते हैं।

पान के साथ रखने लगे कोल्डड्रिंक, कुरकुरे
जब से पान गुटखा अस्तित्व में आया है, पान विक्रेताओं को अपनी दुकान चलाने के लिए कई अन्य प्रयास भी करने पड़ रहे हैं। पहले जहां सिर्फ पान बेचकर ही घर का खर्चा चल जाता था वहीं अब दुकान पर पान के अलावा बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, बिस्किट, कुरकुरे, नमकीन, कोल्डड्रिंक आदि चीजें भी रखनी पड़ रही हैं। कई पान विक्रेता ब्रेड बटर भी रखते हैं।


एक नजर इधर भी
देसी पान- यह पान अपेक्षाकृत मोटा होता है। इसका सूखा पत्ता चबाने पर सौंफ जैसी खुश्बू आती है। यह पान लगाकर जब खाया जाता है तो मुंह में आसानी से घुल जाता है। इसकी तासीर ठंडी होने से गर्मियों में ज्यादातर देसी पान की डिमांड की जाती है।
मघई पान- ये पान गर्म होता है।
बनारसी पान- तम्बाकू वाले पान के लिए बनारसी पान ही ज्यादातर लगाया जाता है। इसकी तासीर भी गर्म होती है।
जगन्नाथी पान-यह पान सबसे ज्यादा महंगा होता है।
पान की कीमत
मसाला पान-तीन रुपये
देसी पान- मीठा - पांच रुपये
तम्बाकू वाला पान- चार रुपये
वर्क वाला पान-दस रुपये
(इस पान में चांदी का वर्क लगा होता है, कई तरह की मीठी सुपाड़ी तथा गुलकंद डाला जाता है)


मलेशिया से हुई शुरूआत
माना जाता है कि पान खाने का चलन मलेशिया से शुरू हुआ था और अफ्रीका तक पहुंचा। लेकिन, वर्तमान में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रमुख रूप से पान खाया जाता है। वियतनाम में पान को वहां की संस्कृति से जोड़ कर देखा जाता है। यहां पान और सुपारी को साथ रखने को शादी के संदर्भ में देखा जाता है। दक्षिण पूर्व एशिया में शादी के वक्त दूल्हा, दुल्हन के माता-पिता को पान भेंट कर दिया।

शाही शौक था पान खाना
भारत में शुरूआती दौर में पान खाना शाही शौक समझा जाता था। राजा-महाराज अपने साथ ऐसे दास-दासियां रखते थे जो राजाओं के साथ पानदान लेकर चला करते थे। चूंकि पान खाने से सांसों में महक आ जाती थी, अत: प्रेमी-प्रेमिकाओं के बीच भी पान खाने का चलन था। पान चबाना उस दौर में एक हद तक प्रेम का प्रदर्शन भी माना जाता था। सुपाड़ी को मेल और पान के पत्ते को फीमेल रूप में देखा जाता था। महिलाएं अपने होठ लाल रखने के उद्देश्य से भी पान खाती थीं। इतिहास की तस्वीरों में नूरजहां को कई जगह पान खाते हुए दिखाया गया है।


मुच्छड़ पानवाला
अगर आप मुंबई की गलियों से गुजर रहे हैं और पान खाने की तलब लगे तो मुच्छड़ पान वाला के पान का स्वाद जरूर चखिएगा। मुच्छड़ पानवाला का पान मुंबई में इतना प्रसिद्ध है कि यह दुकान पान के शौकीनों के लिए सुबह दो बजे तक खुली रहती है। यह दुकान जयकिशन तिवारी ने 1977 में शुरू की थी। अब आप सोच रहे होंगे कि इस दुकान का नाम मुच्छड़ पानवाला क्यों रखा गया..दरअसल जयकिशन के घर में सभी लोगों की मूंछें बहुत बड़ी-बड़ी हैं। भई, मूंछें इसान की शान होती हैं अत: दुकान का नाम मुच्छड़ पानवाला रखना भी शान की बात है।

महिलाओं के लिए पान की स्पेशल दुकान
पान खाने का शौक महिलाओं को भी होता है लेकिन वे पान की दुकान पर जाकर पान खरीदने में संकोच करती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए दिल्ली की पान-पार्लर चेन, यामू पंचायत ने अहमदाबाद में आउटलेट खोला है। ऐसे कई अन्य आउटलेट गुजरात में खोले जाने हैं। हर आउटलेट में 15 महिलाएं कर्मचारी के तौर पर नियुक्त हैं। चार बहनों द्वारा शुरू किए गए इस आउटलेट में महिला ग्राहकों का स्वागत किया जाता है। यूं तो पुरुष भी यहां से बीड़ी-सिगरेट, पान खरीदने आ सकते हैं लेकिन अगर वे परिवार के साथ आएं तो उनका वेलकम बेहतर ढंग से होगा।
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